71 |
जानकीपंचाशिका : जिसमें देवी अष्टक और जानकी मंगल भी अन्त में संयुक्त है / उमरायने रचना किया / Umarāya -- Navalakiśora,1896 ,SARDA
|
72 |
वैद्यजीवन भाषा : इस पुस्तक में सम्पूर्ण रोगों की उपयोगिक औषध वर्णित हैं / शङ्करप्रसाद ने लोलिम्बराज संस्कृत पुस्तक से छन्दों में उल्था किया / Lolimbarāja,Śaṅkara Prasāda -- Navalakiśora,1903 ,SARDA
|
73 |
भानप्रकाशिका : जिसमें श्रीराधामाधोजी के लीलाविषयक अनेक प्रकार के राग रागिनियों में अत्यन्त रसीली विरहभरी गानेकी चोज़ें लिखी हैं व सम्पूर्ण रागरागिनियों की व्याख्यान भी सरलरीति से लिखीगई है / मुन्शीदूधनाथ लाल ने बाबूरामदयाल, बाबूगुलाबराय व रामप्रसाद के अनुग्रहसे रचनाकिया / Dūdhanātha Lāla,Rāmadayāla,Gulābarāya,Rāmaprasāda -- Navalakiśora,1906 ,SARDA
|
74 |
युगलसम्बाद : बोधप्रकाश : जिसमें योगवाशिष्ठादि वेदान्त ग्रन्थों का सार मत गुरु शिष्य के प्रश्नोत्तरों सहित तथा भगवद्गीतादि के प्रमाणों से भूषितहै / महात्मा युगलकिशोर ने वर्णन किया है / Yugalakiśora -- Navalakiśora,1895 ,SARDA
|
75 |
सेनापतिऊदल : दुःखान्त : नाटक / वृन्दावनलालवर्म्मा रचित / Varmmā, Vr̥ndāvanalāla -- Navalakiśora,1909 ,SARDA
|
76 |
वर्णप्रकाशिका / रायदुर्गाप्रसाद से तर्जुमा होकर / Rāyadurgā Prasāda -- 1. hissā -- Navalakiśora,1918 ,SARDA
|
77 |
पत्रमालिका / पण्डित श्रीलालने बनाई / Śrīlālane, Paṇḍita -- Navalakiśora,1891 ,SARDA
|
78 |
चुरिहारिन लीला : अर्थात् श्रीकृष्णजी महाराज का चुरिहारिन बन कर श्रीराधिकाजी महारानी से मिलना / विश्वेश्वरप्रसाद ने निर्माण किया / Viśveśvara Prasāda -- Navalakiśora,1909 ,SARDA
|
79 |
श्रीरसार्णव : जिसमें अष्टनायकाओं अर्थात् स्वकिया, परकीया, मध्या, सामान्या, उत्का, प्रौढ़ा, प्रगल्भादिके भेद व लक्षण काब्य रीतिसे मनोहर दोहाकवित्तों में वर्णित हैं / श्रीशुकदेव कवि ने निर्मितकिया / Śukadeva -- Navalakiśora,1890 ,SARDA
|
80 |
नानार्थ नवसंग्रहा वली / माता दीन शुक्ल से वनवाया / Śukla, Mātā Dīna -- Navalakiśora,1874 ,SARDA
|